कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि नहाय खाय से लेकर सप्तमी तिथि उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक छठ पर्व मनाया जाता है।इस दौरान भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है।छठ पूजा खास तौर पर संतान की कामना और लंबी उम्र के लिए की जाती है।छठी मैया सूर्यदेव की बहन हैं और इस पर्व पर इन दोनों की ही पूजा अर्चना की जाती है।चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में सात्विक भोजन किया जाता है।पहले दिन खरना, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन सूर्य संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगले सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।इस महापर्व छठ को मनाए जाने के पीछे की कई कहानियां क्या है और इसके महत्व क्या है इसकी शुरूआत कैसे हुई इन सभी विशयों के बारें में आज हम आपको बताएंगे।
पुराणों के मुताबिक, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराई और यज्ञ आहुति के लिए बनाई खीर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी। बाद में मालिनी को पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद बहुत दुखी हो गए। वह पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने की कोशिश की। उसी वक्त भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकट हुईं। राजा ने पूछा कि आप कौन हैं। उन्होंने कहा सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो तो तुम्हें इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से षष्ठी यानी छठी मैया की पूजा होती चली आ रही है।
मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।सबसे पहले महादानी सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण बिहार के अंग प्रदेश जिसका वर्तमान में नाम भागलपुर है वहां के राजा थे और सूर्य और कुंती के पुत्र थे।सूर्यदेव से ही कर्ण को दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त हुए थे, जो हर समय कर्ण की रक्षा करते थे।कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने और आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मुद्गल ने माता सीता को छठ व्रत करने को कहा था।आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब रामजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था।इससे मुक्ति पाने के लिए कुलगुरू मुनि वशिष्ठ ने ऋषि मुद्गल के साथ राम और सीता को भेजा था। भगवान राम ने कष्टहरणी घाट पर यज्ञ करवा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाई थी। वहीं माता सीता को आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को व्रत करने का आदेश दिया था। मान्यता है कि आज भी मुंगेर मंदिर में माता सीता के पैर के निशान मौजूद हैं।
25 अक्टूबर 2025- पहला दिन (नहाय खाय)
26 अक्टूबर 2025- दूसरा दिन (खरना)
27 अक्टूबर 2025- तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य )
28 अक्टूबर 2025- चौथा दिन (सूर्योदय अर्घ्य)
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